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कविता और गुलाबी साँझ / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
तुम कहते हो, मैं
अपनी कविताओं में दुःख, चिन्ता,
बेरोजगारी, विद्रोह, अविश्वास को
उतारती हूँ
तुमने मेरी कविताओं में
एक खुश्सनुमा मौसम की
तलाश की, वो
तुम्हे
नही मिला
तुमने मेरी कविताओं मे
उस साँझ को ढूँढने का प्रयत्न किया
जो अपने अन्तिम क्षणों में
असंख्य किरणों से क्षितिज को
गुलाबी कर देती है,
तुम असफल रहे
तुमने मेरी कविताओं में
चाँद, हवा, झील, चिड़ियाँ
तलाशने की कोशिश की
तुम्हे ये सब भी नही मिला
इस तंग अँधेरी दुनिया में
जहाँ मैं रहती हूँ
वहाँ कुछ भी नही है
जो नही है
वो मैं कहाँ से लाऊँ!
कहाँ से लाऊँ?