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कविता का जन्म / सुदर्शन रत्नाकर
Kavita Kosh से
कविता यूँ ही नहीं बन जाती
डूबना होता है मन के गहरे सागर में
उठती हैं जब अहसास की लहरें
संवेदनाओं के ज्वार
मथ जाते हैं, जब व्यथाओं, पीड़ाओं के भाटे
तब निकलते हैं, अथाह मोती
विष और अमृत के पात्र
विष कवि स्वयं पीता है
और अमृत बाँटता है
दर्द वह स्वयं सहता है
तभी तो कविता का जन्म होता है।