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कविता का पहला शब्द / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
मैं ईंटें पकाते
मजदूरों के पास गया
मैं गया सड़कों पर
तारकोल बिछाते
लोगों के पास
खेतों में फसलें बोते
किसानों से मिला मैं
दूर नहर किनारे
पशु चराते चरवाहों के पास बैठा
सुनता रहा गीत उनके
गाँवों को जाने वाली बसों में बैठा
साधारण लोगों के पास
चौपाल में देर तक बैठा
सुनता रहा अंगारों की तरह दहकती
उनकी बातें
मैं गया आम लोगों के बीच
सीधे-सादे अनपढ़ लोगों के बीच
उनकी बातें सुन कर
मजाक सुन कर उनके
सुनकर उनकी नोंक-झोंक
और जिंदगी के बारे
उनका फलसफा सुनकर
हैरान रह गया मैं
और मेरा यह विश्वास
हुआ और भी दृढ़
कि किसी भी कविता का पहला शब्द
साधारण लोग लिखते हैं
और कोई भी कविता
सब से पहले
आम आदमी के मन की
पृथ्वी से फूटती है।