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कविता का प्रसव / मंजुश्री गुप्ता
Kavita Kosh से
हर दिन के
तरह तरह के वाकये
और उथल पुथल
क्यों जगाते नहीं
एहसास कोई ?
उमड़ता घुमड़ता
रहता है
दिल में कुछ-कुछ
अव्यक्त अनाम सा
क्यों साथ छोड़ देते हैं शब्द
क्यों उतार नहीं पाती हूँ
पन्नों पर कविता में ?
क्यों महसूस नहीं पाती हूँ
गम की चुभन या
ख़ुशी की छुअन
हाँ शायद
कोढ़ी हो गयी हैं
संवेदनाएं
और कविता का प्रसव तो
होता है वेदना से ही