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कविता की असंख्य परिभाषाएँ हैं / लवली गोस्वामी

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तुम्हारे ऊपर सोकर तुम्हे चूमने से पहले
मैं अपनी नाक की नोक से तुम्हारी नाक की नोक दबाती हूँ
मुझे वह दबाव महसूस होता है
जो कविता की पहली पंक्ति लिखने से पहले
क़लम की नोक कागज़ पर डालती है
थोड़ी झिझकती सी उत्सुक दाब

जब कभी मैंने माँ के पैर गर्म पानी की तश्तरी में डूबोकर
उसकी बिवाइयाँ पुराने टूथब्रश से साफ़ की
उसपर पेट्रोलियम जेली लगायी
उसके चेहरे पर मुझे महसूस हुआ सुख
उष्ण और मुलायम
वह जो एक कविता पूरी कर लेने पर होता है

सर्दी की एक सुबह धूप में
अपने पैरों पर बच्चे को निर्वसन को लिटा कर
मैंने उसपर सरसों का तेल मला
अब वह थककर डायरी पर लेटी क़लम की तरह निश्चिन्त सो रहा है
कविता जैसा ही है उसका निर्दोष गुलाबी चेहरा
मुझे भरोसा है कि मेरे शब्द
उसकी निष्कलुष नींद के भीतर साँस ले रहे हैं।