कविता की मौत / अनंत भटनागर

मस्तिष्क की विराट्
शून्यता को चीरकर
विचार
जन्म पाते हैं।
शब्दों की देहरी
चढते-चढते
संवादों से
मुठभेड कर
दम तोड जाते हैं।
और फिर
दिनदहाडे
एक कविता की
मौत हो जाती है।

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