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कविता कोश परियोजना के 12 वर्ष - जुलाई 2018

Kavita Kosh से
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साहित्य हमारी धरोहर है, जो लिखा जा रहा है, उसे नयी पीढ़ी के लिए संरक्षित करने की जरूरत है. जिससे वे समय, परिवेश व संवेदना को समझ सके. यह काम कविता कोश कर रहा है. पिछले 12 वर्षों के अथक प्रयास के बल पर हमने साहित्य के विशाल संग्रह को संरक्षित किया है. क्षेत्रीय भाषा में लिखे साहित्य भी इसमें समाहित किये जा रहे हैं. ललित जी हमेशा इस एतिहासिक कार्य के लिए याद किए जाएँगे। उक्त बातें संयोजक और कविता कोश के स्वयंसेवक राहुल शिवाय ने शुक्रवार को चेंबर ऑफ कॉमर्स में कविता कोश व आंच वेब साहित्यिक पत्रिका की ओर से आयोजित संवाद, सम्मान व कवि सम्मेलन के मौके पर कही.

इससे पूर्व दीप जला कर कार्यक्रम की शुरुआत की गयी. उद्घाटन संबोधन डॉ संजय पंकज ने किया. सबसे पहले आंच पत्रिका की ओर से राहुल शिवाय, डॉ संजय पंकज, शारदा सुमन व कैलाश झा किंकर को शॉल व मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया.

संवाद के क्रम में शारदा सुमन ने कहा कि कविता कोश में गीतो के वीडियो का अलग सेक्शन बनाया गया है. आप हमें गीत दें, हम उन्हें लय देकर संरक्षित करेंगे.साहित्य ही वह मार्ग है जिससे हम जमीन या संस्कृति से जुड़े रह सकते हैं. साहित्य और संस्कृति को संजोने के लिए कविता कोश प्रतिबद्ध है. साहित्य के प्रति लगाव उन्हें उनकी मां से विरासत में मिली है. मां के जाने के बाद वह कविता कोश से जुड़ीं. और कविता कोश के लिए काम करना उन्हें अपनी मां के साथ जुड़ने जैसा लगता है.

आंच की संपादक डॉ भावना ने कहा कि वेब साहित्यिक पत्रिका के माध्यम से देश-दुनिया में साहित्य के प्रचार-प्रसार में लगे हैं. समसामयिक साहित्य के अलावा हम अपनी साहित्यिक धरोहर को भी संरक्षित कर रहे हैं. अध्यक्षता डॉ अंजना वर्मा व संचालन महफूज अहमद आरिफ ने किया.

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस मौके पर कवियों ने गीत, गजल व कविताओं से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया. डॉ पूनम सिंह ने मां की सीख थी दुख में कभी घुटनों के बल नहीं गिरना व राहुल शिवाय ने थक गया ढूंढ़ कर मंदिर में मस्जिद में जिसे, मां को छूते ही लगा उसको मैंने छू लिया रचनाओं से संवाद किया. डॉ भावना की गजल बिना बोले ही कह जाते बहुत हैं, ये आंसू लफ्ज से अच्छे बहुत हैं भी काफी सराही गयी. कैलाश झा किंकर ने अजीत बात है रहबर नजर नहीं आता, मुसीबतों में वह अक्सर नजर नहीं आता सुना कर लोगों की सराहना ली. पंखुरी सिन्हा ने रंगों की कहासुनी में रचने वाले जाने किस रंग की है दुनिया व डॉ आरती ने वादियों का जब नजारा हो गया, फिर तुम्हारी याद का रोशन सितारा हो गया सुना कर तालियां बटोरी. एम अालम सिद्दिकी की गजल जालिम के खौफ से न बदलना कभी मेरा मिजाज, जो भी बुरा है, उसको बुरा कह लिया करो भी काफी सराही गयी. डॉ अनीता सिंह ने गोद में चांद मेरी आया है, रात भर चांद मुस्कराया है व महफूज अहमद आरिफ ने मैं मुसाफिर था चलता रहा,ऐसी आरिफ घटा दे गया सुनाकर लोगों को मुग्ध कर दिया. डॉ संजय पंकज ने सात रंग से सजी अल्पना सजी कल्पना द्वार पर, हल्दी लगी हथेली अम्मा छाप गयी द्वार पर सुना कर खूब तालियां बटोरी. डॉ सिबगतुल्लाह हमीदी ने क्या सुनाये अपनी कुछ दीवाना तेरे शहर में, भीड़ में भी रह जाये अनजाना तेरे शहर में सुना कर माहौल में रवानगी ला दी. श्रवण कुमार की पंक्तियां मैं जिनकी फिक्र में दिन रात लिखता हूं, उन्हीं के साथ जीता हूं उन्हीं के साथ मरता हूं भी काफी सराही गयी. इसके अलावा मनोज कुमार, लता ज्योतिर्मय, नागेंद्र नाथ ओझा, नंद कुमार मिश्र व प्रवीण कुमार मिश्र की रचनाएं भी काफी पसंद की गयी.

अंत में शारदा सुमन, कैलाश झा किंकर, डा. संजय पंकज, डा. भावना, राहुल शिवाय ने मिलकर काटा केक और सभी साहित्यकारों ने जितना खाया उतना ही प्यार से चेहरे पर लगाया।