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कविता क्लर्क की / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग

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पहले और अब में
आ गया है काफ़ी फ़र्क
पहले मैं बेकार था
अब बन गया हूँ क्लर्क।
अफसर तक बुरा नहीं लगता
हो गया है रुचि-परिवर्तन
कल पूछ रहा था मैं अपने मन से-
क्या होता है मन?

शाम को लोग जाते हैं घूमने-
कनॉट प्लेस या बुद्ध जयंती पार्क
इंडिया गेट या पिक्चर हॉल
कुछ खेलते हैं बाली बॉल!

शायद इनके दिमाग़ में भरा है
भूसा और गत्ता।
मैं तो पाँच बजे के बाद
करूँगा केवल काम याद
और ले ले कर स्वाद
बनाऊँगा समयोपरि भत्ता!