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कविता नन्दन / भारत यायावर

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कविता नन्दन
के अभिनन्दन
में हो ऐसा क्रन्दन !

फटे ढोल पर
थिरक-थिरक कर
नाचे जब गोबरधन !

अपनी गावै,
मौज उड़ावै,
रहै सदा बन ठनठन !

दूरदर्शी है दूरदास,
कुछ बात करै दूरदर्शन !

विकटनितम्बा
 कवयित्रियों के
दूरस्थ करै करमर्दन !

कविता नन्दन
बहुभंजन
रमा करो हे गंजन !

भारत यायावर से मत छिटको,
साथ चलो जी बन-ठन !