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कविता पहले कविता हो / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
कविता पहले सब से,
कविता हो
चाहें उसमें फिर
बंदूक चले,
नारा हो,
या रामदास की
हत्या हो
चाहे उसमें
वह सब हो
जिसको जीते हम
दिनों-दिनों, या
बचते जिससे-
कविता
पहले
कविता हो
फिर चाहे उसमें
राग रंग हो
माँसलता हो,
छंद हो या
छंद नहीं हो-
कविता पहले
सबसे,
कविता
हो
फिर चाहे उसमें
फेंटेसी या
सररीयल या
उत्तर-
आधुनिक हो-
दावे हों,
बँटवारे हों,
अपनी-अपनी
पकड़-जमीं हो,
जनवाद हो
या क्षणवाद हो
कविता पहले
कविता हो।