भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता में कियां कथीजै / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खुमाणचंद जी री हेली में
रसोळी दांई कुळै
बाईस बरसां री एक पीड़
रंग में तवै नै लजावै
तुलण बैठै तो
कूंटल रा बाट कम पड़ जावै
पण है फूल बाई !

कुरड़ियै रै टापरै में
खून थूकती धांसै जिकी सांस
उणी अकूरड़ी माथै
फूस दांई बधै बारै बरसांळी बिमली
रामजी रै दियोड़ै डील नै कठै लेय जावै
              कियां लुकोवै पाण ?

फूलबाई कानी कोई थूकै कोनी
बिमली सूं कोई चूकै कोनी
कूड़ कोनी आ बात जिकी
कविता में कियां कथीजै ?