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कविता में छकड़ा / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
क्या कविता में नहीं आ सकता
छकड़ा
महज इसलिए कि
बहुत शोर करता है
बारिश व धूप से बचने के लिए
छत तक नहीं होती उसमें
या कि
परिवहन विभाग की सूची में
नहीं है
छकड़े नाम का कोई वाहन
लेकिन फि र भी
क्या यह सच नहीं है
कि गरबीले गुजरात के
लाखों लोग
रोजाना छकड़े में
करते हैं सफ र
यह भी सवाल उठ सकता है
कि कवि को इतना शऊर तो
होना ही चाहिए कि
कविता में कम से कम
कार तो आए
लेकिन कहाँ जाएँगे वे लोग
जो कार को केवल
सड़क पर देखते भर हैं
जिनके ख्वाबों तलक में भी
बसा है छकड़ा।
वस्तुत:
कविता में छकड़े का होना
नवाचार नहीं
लोकाचार है
रस-छंद-अलंकार सरीखा।