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कविता में दिलचस्पी लेता बच्चा / हरीश करमचंदाणी
Kavita Kosh से
कोरे कागज़ पर कुछ लिखते देख पूछा बच्चे ने -लिख रहे हैं कविता ?
हाँ
बरसात पर ...नदी ,पहाड़ पर...फूल पतों पर...या फिर चिडिया पर
नहीं ...इनपर नहीं
फिर किस पर ?
तुम पर
पता भी हैं मैं क्या सोच रहा हूँ ?
हाँ ,नहीं ...शायद
अच्छा बताता हूँ मैं
बरसात में जब भीग गए चिडिया के पंख
उड़ नहीं पाई तो झपट लिया बिल्ली ने
यह रहा उसका नुचा पंख
बच्चा रुआंसा था
फिर आहिस्ता से बोला
मैं भी लिखूंगा कविता उस चिडिया पर
उस दुःख पर उसकी पीड़ा कितनी सच्ची थी
मान हुआ बच्चे पर
भयभीत भी हुआ मगर
लगातार और तेजी से
क्रूर होती जा रही इस दुनिया में
इस मन के साथ
खुद को बच्चा पाना कितना मुश्किल होगा ?
एक पिता अपने पुत्र के लिए चिंतित था