भायलो कैवे
बावळो हुग्यो कांई
कांई सोचै है
बैठ्यो
आव घुम‘र आवां
गुवाड़ में ।
किंया समझावूं
गुवाड़ तो गुवाड़ म्हैं तो घूम लेवूं
आखै जग में कविता रै औळे-दौळै
एकलो बैठयो ई ।
भायलो कैवे
बावळो हुग्यो कांई
कांई सोचै है
बैठ्यो
आव घुम‘र आवां
गुवाड़ में ।
किंया समझावूं
गुवाड़ तो गुवाड़ म्हैं तो घूम लेवूं
आखै जग में कविता रै औळे-दौळै
एकलो बैठयो ई ।