Last modified on 6 जुलाई 2010, at 13:46

कविता है यह / वीरेन डंगवाल


जरा सम्‍हल कर
धीरज से पढ़
बार-बार पढ़
ठहर-ठहर कर
आंख मूंद कर आंख खोल कर,
गल्‍प नहीं है
कविता है यह.
00