भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता / अपर्णा अनेकवर्णा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उँगलियों के नाखूनों के साथ ही..
चबा जाती हूँ ख़ुद पे भरोसा अपना..

आत्मसन्देह से आत्मविश्वास तक का पुल..
कच्चा-सा है.. डोलने लगता है

तब कुछ स्नेही बढ़ कर.. थाम लेते हैं
कुछ तो घबराए से.. पास आ जाते हैं

कुछ दूर से.. चमकती मुस्काने ओढ़े..
धड़कता दिल छुपाए.. भरोसा दिलाते हैं

इस तरह.. मैं थोड़ी-सी.. ज़रा-सी कविता
और बुन.. गुन.. कह.. लिख लेती हूँ...