भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता / कल्पना मिश्रा
Kavita Kosh से
एक कविता है जहन् में बहुत दिनों से
कविता क्या लिखी जाती है?
वो जो दिन भर मजदूरी करती है
और रात को बच्चों को पकाकर अपने हाथों से खिलाती है
कवयित्री जैसी लगती है मुझे
पिता गोद में बच्चे को आसमां में जब
चिड़िया दिखाता है, गुनगुनाता है, कवि सा लगता है
दादी की झुर्रियों में कविता दिखती है
बच्चा जब भागता है
कोई नई चीज छूने
किशोरियाँ जब मंद मंद मुस्काती हैं
वो प्रेम में डूबा युगल
वो कक्षा में पहाड़े रटवाता मास्टर
सभी कुछ तो कविता जैसा है
नदियों में, पहाडों में
सूरज में, चाँद मे
कविता ही कविता है
फिर और एक कविता
क्यूँ उतारी जाए कागज में