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कविता / निज़र सरतावी / कल्पना सिंह-चिटनिस

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कब तक छुपाए रखोगी तुम
अज्ञात के गर्भ में
एक त्रस्त, अकुलाए और घबराए हुए
शर्मिन्दा साए को
जिनके साथ सूरज अपना हृदय नहीं बाँटता
ना ही तारों की छिटकती रोशनी उस पर फ़िदा होती है,
या चाँद का धीमे-धीमे धड़कता दिल
 
और कैसे रहोगी तुम पृथक्,
एक तिलस्मी साए की तरह
बिना साँस लेती एक देह की तरह
माँस के एक लोथड़े की मानिंद
एक ककून के रेशमी दीवारों से घिरे
उस आकार की भाँति
जिसका प्रारब्ध के ग्रन्थ में
कहीं कोई वृतान्त नहीं
 
तुम कब तक बनी रहोगी एक धुन्धली आवाज़?
एक बड़बड़ाहट
जिसे अक्षर नहीं पहचानते
एक गुनगुनाहट
बिना
तारों की झँकार और नृत्य के
 
और कैसे सह पाओगी बनना
एक उद्देश्य,
विधेय की प्रतीक्षा में।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : कल्पना सिंह-चिटनिस