भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता / फ़्योदर त्यूत्चेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गर्जनाओं के बीच
अग्निकुण्डों के बीच
स्वतःस्फूर्त कटु-कलहों के बीच
आकाश से उतर आती है
वह दिव्य शक्ति

हम धरती-पुत्रों के पास
आँखों में वैंगनी आभा लिया
उद्वेलित समुद्र में वह
शान्तिप्रद उड़ेलती है द्रव।

(1850)