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कविता / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
कविता एक छोटा सा इंकार है
एक हस्तक्षेप
चट्टान में चेहरे की तलाश,
जीने की एक जिद
या एक खिड़की
मैं ठीक-ठीक नहीं जानता
क्या है मेरे लिए कविता?
इस सदी के खत्म होने में
सिर्फ तीन वर्ष बचे हैं
मेरे लिए इतनी खुशी कम नहीं
कि मैं खड़े होकर
घोषित कर सकता हूं।
कि लोगो! मत डरो
अगली सदी से,
कविता कुछ हो या न हो
मगर जाती हुई सदी का
आखिरी बयान
हर्गिज नहीं है कविता।