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कविता / संगीता गुप्ता

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कविता
मैं नहीं लिखती
वह लिखती है मुझे

तुम कभी मिलना
तो कविता नहीं
पढ़ना मुझे

खोल कर रख देती है कविता
जख्मों की जतन से
छुपायी गयी पोटली
गैर की ऑंखें
आईना बन जाती हैं
मेरे लिए