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कविता / सांवर दइया
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					मिनख रो अन्तस पिछाण
दरद, हरख अर हेत री रागळियां
      उजागर करण रो बूतो हुवै
दिन रै उजास में
साहूकारां रो भेख धारियां पूजीजता
रात रै अंधारै में
मिनख रो खून चूसणियां रा 
        माळीपाना उतारण रो हिम्मत हुवै
       
अंधारै में गम्योड़ा
सुखां रा मारग सोध 
जुगां तांई
मीलां सफीट देखण री
                     हूंस हुवै
तो लै 
सावळ झाल आ कलम 
संभाल ऐ पाना
भेळी कर मानखै री पीड़
अर लिख कविता !
	
	