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कवियों गाओ तुम क्रांति गीत / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
अब शान्ति-शान्ति की धुनें भूल
कवियों, गाओ तुम क्रांति गीत।
जो अग्नि धर्म अपनाते हैं
किंचित भयभीत नहीं होते
जो नहीं जगाते जन-मन को
वे सच्चे गीत नहीं होते
कवि सैनिक का है धर्म एक
बंदूक कलम की बनी मीत।
बारूदी लपटें जब अपने
गुलशन को राख बनाती हैं
पंक्तियाँ प्रेम गीतों की तब
चिंगारी बन दहकाती हैं
जो नहीं समय के साथ चला
वह असमय बन जाता अतीत।
वे कवियों के थे गीत जिन्हें
गा लोग जवानी भूल गए
प्रेरणा प्राप्त कर कवियों से
हँस हँस फांसी पर झूल गए
कवियों की वाणी से ही हम
उन अंग्रेजों को सके जीत।