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कवि और कच्चा रास्ता / देवेश पथ सारिया

Kavita Kosh से
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कितना उपजाऊ है वह कच्चा रास्ता
जो कवि के घर के सामने से गुज़रता है
वहाँ दृश्य और कविताएँ उगती हैं

किसी भी लिहाज़ से
डामर से लिपी, पुती, चमकती सड़क से अधिक भाग्यशाली

दिन भर जीवन के कई दृश्य
ताकता है वहीं से
क़स्बे का कवि

कच्चे रास्ते का कवि
कच्चे रास्ते से चुनता है कविता के कंकड़

देखता है
हर रोज़ कमर पर बच्चा टिकाए
एक दिन का राशन ख़रीदने जाने वाली
औरत को
जिसकी साड़ी के छींटें
स्वाभिमान के रंग से पगे हैं

कभी उड़ आता है
धुएँ के साथ
गिनती भर मसालों से बघारी
सब्ज़ी का स्वाद

दिन ख़त्म होने के बाद
रोड लाइट की पीली उदास रोशनी मे
थके मज़दूरों को लौटते देखता है

रात गहराने पर
आवारा कुत्तों की धींगामुश्ती का गवाह बनता है

कवि जो तस्वीरें खींचने लगा है
कुछ दृश्य कैमरे में उतार लेता है
जिन्हें देख लोग लिखते हैं कविताएँ

कुछ दृश्य, कोई गंध सिर्फ़ वही सहेज पाता है
हर दृश्य का मर्म कैमरा नहीं पकड़ पाता
किसी कैमरे का रेजोल्शयून
कवि के मन जितना कहाँ