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कवि की हत्या / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
नहीं थी धमाके की कोई आवाज़
उठा-पटक के निशान भी नहीं थे
क्योंकि हत्या बड़ी साफ़गोई से हुई थी
एक कवि की
वह किसी अवसाद की गिरफ़्त में नहीं आया था
किसी कलह का शिकार भी नहीं था वह
हौसले पस्त दबंगों ने
हत्या की सुपाड़ी देने का ख्याल
निकाल दिया था मन से
उस कवि की हत्या हुई थी
जो कभी
उम्मीद के फाहे से
ओस की कोमल बूँदे
करता था इकट्ठा
वह करता था धरती की नक्काशी
सुन्दर-सुन्दर शब्दों से
बोता था शब्दों का बीज
वह जंगल को हरियाली और नदियों को
रास्ता देता था
वह बैठाता था जुगत
दुनिया की बेहतरी के लिए
मारा गया कवि चुपचाप
बड़ी बारीक़ी से
किसी बड़े कवि के हाथों !