कवि के लिए / कमल जीत चौधरी
तुम्हारे पैर भूत की तरह
पीछे उलटे मोड़ दिए जाते हैं
तुम चुप रहते हो
तुम्हारा चेहरा पीठ की तरफ दरेर दिया जाता है
तुम चुप रहते हो
तुम्हारे शब्दों को नपुंसकता के इँजेक्शन लगा कर
अर्थ तक पहुँचने दिया जाता है
तुम चुप रहते हो
तुम्हारी ऑंखें और कान छीन लिए जाते हैं
तुम चुप रहते हो
तुम्हारे दाँतों की मेहनत के अखरोट
दूसरा खा जाता है
तुम चुप रहते हो
तुम्हारी कविता सुनकर
मुख्य अतिथि का कुर्ता झक सफ़ेद हो जाता है
तुम चुप रहते हो
जब एक मीटर आसमान को तरसती
एक धरती के यौनाँगों में
पूरी दिल्ली नमक उड़ेल रही थी
उस रात भी तुम चुप ही थे
तुम इससे भी बुरी रातों में चुप रहते हो
ज़रा, थोड़ा सा ज़्यादा नमक डल गया है तुम्हारी सब्ज़ी में
आज फिर तुमने आसमान सिर पर उठा लिया है