कवि कोकिलकें युग-निमन्त्रण / कीर्तिनारायण मिश्र
बीसम शताब्दीक यन्त्र-युगमे हमर जन्म भेल अछि
माथा धुँआएल अछि वैज्ञानिक अनुसंधानसँ
हृदय पर राखल अछि
अर्थक्रान्तिक असहृ पाथर
बमक विस्फोट, प्रक्षेपास्त्रक अन्तरिक्षव्यापी प्रभावसँ
भयाक्रान्त अछि जीवनक प्रत्येक श्वास
यंत्रोद्भूत हमर जीवनक रहस्य
नहि होएत अहाँकें ज्ञात
हे कवि शिरोमणि !
अहाँ तँ देखैत रहलहुँ
अज्ञात यौवनक अपरूप रूप
सद्यः स्नाताक फूजल चिकुर-राशि
सगुनाएल सिउँथ
बेली-कनैलसँ सजाओल वेणी
अहाँ की बुझबै लिपिस्टिक-रंजित
ठोरक की शोभा होइत छैक ?
अहाँ की बुझबै बिना चूड़ीक हाथक रहस्य ?
अहाँ तँ रही निपट अनाड़ी
नन्दक नन्दनकें कदम्ब तरू अरे
अहाँ देखैत रहलिअनि,
मुदा बस-स्टैण्ड पर प्रतीक्षाकुल
मजनूक सहोदर दिस नहि गेल ध्यान
‘बॉल-डान्स’क मिसियो भरि नहि रहए ज्ञान !
प्रेमी-युग्मकेर अहाँ देखैत रहलहुँ निधुवन किलोल
आह ! देखि जँ सकितहुँ आजुक प्रयोगशालामे
कोना होइत छैक
अंकुरित यौवनक प्रत्येक भंगिमा पर अनुसन्धान
गंगाकेर महिमा गाबि अहाँ कएलहुँ
मिथिलाकें पाप-मुक्त
मुदा आब तँ गंगा छथि शीशीमे बन्द
बिलाए गेला बमभोला
धर्म-निरपेक्षताक भापमे।
आइ जुनि सुनाउ महेशवाणीक मर्म।
यदि हमर निमन्त्रण होअए स्वीकार
तँ चलि आएब चौरंगीक पार
कोनो ‘बाब्ड-केशी’ अर्द्धनग्नाक
सुगठित बाँहि पकड़ने
हमहूँ भेटब कोनो संकेत-स्थल पर ठाढ़।