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कवि जब भी कविता लिखता है / राघव शुक्ल
Kavita Kosh से
कवि जब भी कविता लिखता है
शरणागत हो जाता है
शब्द चयन करता है मानो
मानस का परायण करता
भरता भाव हृदय के मानो
शालिग्राम पर तुलसी धरता
अक्षर अक्षर लिखता मानो
माला जपता राम नाम की
पंक्ति पंक्ति पर कर लेता है
मानो यात्रा चार धाम की
किसी क्रौंच के शर लगने पर
वो आहत हो जाता है
जब कविता में पीर उपजती
तब तब वेणु बजा लेता है
कहीं प्रेम को पाकर अपने
उर का कक्ष सजा लेता है
जब उत्साह चरम पर होता
तब तब शंख उठा लेता है
और भक्ति में व्याकुल होकर
वो माधव को पा लेता है
पुनः साध्य को पाने के हित
अध्ययनरत हो जाता है