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कवि पशु / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

कवि पशु
(प्राचीन जड़ परंपराओं पर नवीनता की भावना का प्रदर्शन)

ओ नारकीय जीव!
त्ुामने यह देश
रसातल ले जाने में दी मदद,
देखा माता का अंचल फटता,
तुमने चीर दिया उसको निर्लज हो
गिरे वज्र उसी जगह
जहाँ तुम खडे दुष्ट हो।
तुम्हें नरक भी न हो नसीब ,
हे कवि पशु!
(कविपशु कविता का अंश)