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कवि बना कर इस धरा पर है उतारा / सुरेन्द्र सुकुमार

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कवि बना कर इस धरा पर है उतारा
एक शापित यक्ष हूँ मैं।

मैं किसी कोमल कमल का नैन हूँ
मैं कोई सुरभित सुगन्धित बैन हूँ
श्याम वर्णी कोई तो पावन घटा हूँ
या कि मन के ताप का मैं चैन हूँ

इक परी जो सर पटक रो रही है
वो सुकोमल वक्ष हूँ मैं।
एक शापित यक्ष हूँ मैं।

प्यास है पर जल नहीं है क्या करूँ
अपना कोई कल नहीं है क्या करूँ
हैं हज़ारों प्रश्न मेरे सामने
कोई भी तो हल नहीं है क्या करूँ
 
कर रहा हूँ हर तरफ सन्धान मैं तो
इक भटकता लक्ष हूँ मैं।
एक शापित यक्ष हूँ मैं।