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कवि बनी जैभौं / दिनेश बाबा

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होली के ऐला पर
सास के बोलैला पर
ससुराल तेॅ ऐलोॅ छी
पत्नी केरोॅ तेवर सें
लेकिन घबरैलोॅ छी
बिना जग-प्रयोजन के
एन्हौं बोलैला पर
मौसम-बेमौसम छै
बार-बार ऐला पर
पूछलेॅ छै पत्नी नें
ओयसें तेॅ ढंग सें
लेकिन कुछ रुक्खोॅ रङ
आरू कुच्छु व्यंग्य सें-
कैसन छियै नाथ आरू
कैन्हों ई आना छै
इज्जत के ख्याले नै
कैन्हों जमाना छै
पहिनें तेॅ खड़ा छेलौं
होकरा सें सटी केॅ
लेकिन है व्यंग्य सुनी
रही गेलौं कटी केॅ
कुछ आपनोॅ शानोॅ सें
लाजोॅ-गिरानोॅ सें
होकरा सें तीन डेग
चल्लोॅ गेलाँ हटी केॅ
माय-बापें की जानें
हमरोॅ परेशानी केॅ
बीहा कराय देलक
हमरा घेरछानी केॅ
सोचै छै उमिर भेलै
छान-पगहा तोड़तै अब
की जानें हिन्नें-हुन्नें
प्रीत डोर जोड़तै अब
तहीं सें केन्हौ केॅ
जोरी देलकोॅ खुट्टा में
उलझी केॅ मौगी के
रही गेलां दुपट्टा में।
मन में अवसाद भरी
यही सिनी याद करी
होकरा इशारा सें
पास में बोलावै छी
हौले सें प्यार करी
बालो सहलावै छी
फेर कुछ उदासी सें
होकरा सुनावै छी-
की कहियौ नूनूमाय
बेबस के छिकै हाय
तोरा बतैहियौं की
आबेॅ समझैय्यौं की
किस्मत के मारलोॅ छी
सबसें दुतकारलोॅ छी
एम्मे भी पास छियै
तभियो उदास छियै
लगै जना पागलोॅ रङ
हम्में अभागलोॅ रङ
एक्के ईंसान छियै
वड्डी परेशान छियै
चाकरी के फेरा में
हिन्ने-हुन्ने दौड़ै छी
छोटोॅ-मोटोॅ कामोॅ केॅ
धरी-धरी छोड़ै छी
बहुत कुछ पाय लेली
लकड़ी भिड़ाय लेली
दिन-रात सोचै छिहौं
हारी-पारी आपनोॅ ही
माथा केॅ नोचै छिहौं
जब ताँय है साँस छै
मन में एक आस छै
भारती संग लक्ष्मी
के हमरा तलाश छै
बिजनस में जमलोॅ नैं
मन भी तेॅ रमलोॅ नैं
यहेॅ लेली बेमन सें
सब कुच्छ छोड़ि देलौं
मन अपनोॅ दोसरोॅ दिश
हम्में अब मोड़ि लेलौं
नौकरी अनमोल छेकै
मोसकिल सें मिलै छै
ई छै आकाशकुसुम
व्योम में ही खिलै छै
आवै छिहौं जाय छिहौं
आपनोॅ गँवाय छिहौं
केन्हौं केॅ हाथ खर्चा
अखनी जुटाय छिहौं
हमरोॅ है जिनगी ठो
गोबर के चिपरी छै
देखी केॅ गूड़ो पर
टूटै जना पिपरी छै
ओन्हैं केॅ हरदम्में
यहाँ-वहाँ जाय छिहौं
प्रायः ससुरालौ के
रोटी भी खाय छिहौं
जिनगी बिताय छिहौं
रिश्ता निभाय छिहौं।
ई पत्नी सियानी छै
बड़ी अपतज्ञानी छै
हमरोॅ चतुराई पर
पहिलें तेॅ मुस्कैल्हौं
दाँतोॅ में अँचरा लै
थोड़ा सन शरमैल्हौं
होकरोॅ हौ रूप-रंग
चंचल सन अंग-अंग
देख हम्हुं मुस्कैलौं
आँख सें भी राग-रस
होकरा पर बरसैलौं
हौले सें कानोॅ में
फेरू है बतलेॅलौं-
जीना या मरना छै
लेकिन कुछ करना छै
जिनगी संघर्ष छिकै
अंतिम सफलता ही
जेकरोॅ निष्कर्ष छिकै
आखरी है चक्कर छै
किस्मत सें टक्कर छै
जीत होय हार होय
हार नैं मानभौं आबेॅ
सब्भे कुच्छु छोड़ी के
कविता बनैभौं आबेॅ
होकरा छुपैभौं आरू
कोशिश तेॅ करै छियै
राग्है सें गैभौं आबेॅ
आमोद, अमरेन्दर सें
रिश्ता बनैभौं आबेॅ

‘सरलोॅ’ आरू ‘राही’ सँग
दूर दूर जैभौं आबेॅ
हमरा तेॅ आस छै कि
मन में विश्वास छै कि
ईश्वर के इच्छा सें
कुछ तेॅ कमैभौं आबेॅ
आरू कुच्छ नैं सही
कबि बनी जैभौं आबेॅ
हेकरा सें पावन नैं
काम कोय हुवेॅ पारेॅ
जन-गण के सेवा छै
मन केॅ जे छुवेॅ पारेॅ।
हमरोॅ परवशता पर
कातर-विवशता पर
हार्दिक सत्कारोॅ सें
स्नेहिल मनुहारोॅ सें
जेनाकि ठिठोली में
स्नेहसिक्त बोली में
मन में जे कुछ जुटलै
मूँ से ई बोल फुटलै-
हम्हीं तोरोॅ लक्ष्मी छी
हम्हीं छिकिहौं भारती
मन में तेॅ होय छै कि
अभी उतारौं आरती
नाथ तोहें स्वामी छोॅ
हम्में तोरोॅ दासी छी
तोरे सानिध्य आरू
प्रेम केरोॅ प्यासी छी।
वाह, वाह! की बातछै-
हम्में तेॅ धन्य होला
नजरोॅ में बीबी के
हम्में मूर्धन्य होलां
आय केत्तेॅ सचमुच्चे
मिट्ठोॅ रङ बोली छै
अथवा है व्यंग्य छेकै
आकि ई ठिठोली छै
गदगद मन सोचै छी
आइये की होली छै
रही-रही उमगै छै
मोून हमरोॅ गदगद छै
नेह-रस के वर्षण सें
भींजी केॅ सरगद छै।