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कवि / प्रेमजी प्रेम

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कठफोड़ा की नांई
सूखा ठूंठ पै चांच मारतां-मारतां आधी ऊपर कटगी
अर
आधी कट ज्यागी
कस्यां कटगी, भांन कोई नै
कस्यां कटैगी, ग्यांन कोई नै
जमाना कै तांईं ‘ठीक करबा’
अर
बात-बात पै खम ठपकारबा हाळा
आंखर
खेत में पड़ी पगडंडी की नांईं
बणबौ-वगड़बौ कर्या।
साख री लार-लार
खेत सूं पगडंडी की
जाण-पछाण
काचा खेलकणांन की नांईं
छांटा छड़का सूं
नमटबौ करी
म्हूं बार-बार भागबौ कर्यौ
बायरा की लार-लार
अर बखत बेबखत
दूंकबौ-उछळबौ कर्यौ
अब तौ अेक ई बात कौ
बसवास छै
कै अेक न अेक दन
पगडंडी
बण ज्यागी गडार
अर बायरौ बण ज्यागौ बूंळ।
जमानौ जरूर सूणैगौ
कठफोड़ा की चांच की आवाज
खट्-खट्-खट्