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कवींद्र-पंचक / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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महाचमत्कारक, लोल-लोचना,
विचार-धारा-वलिता, विचक्षणा,
चतुर्मुखी, रोचक-चित्र-चित्रिता,
विचित्र है केशव-चित्त-चातुरी।
समुद्र-उत्तल-तरंग-सी लसी,
सुमेरु के शृंग-समान शोभिता,
विरक्ति-हीना, अनुरक्ति से भरी,
अचिन्त्य है केशव-उक्ति-उच्चता।
सुधा-समाना, सरसा, मनोहरा,
सुरापगा-सी सितता-विभूषिता,
सिता-समा है वसुधा विकासिनी,
सुहासिनी केशवर्-कीत्ति-सुंदरी।
बड़ी रसीली, मधु माधुरीमयी,
लसी लता-सी, सरि-सी तरंगिता,
प्रसून-सी है लसिता विकासिता,
कलामयी केशव-कांत-कल्पना।
नहीं बनाती किसको विमोहिता,
नहीं बढ़ाती किसकी विमुग्धता;
विदग्धता आकलिता सुझंकृता,
अलंकृता केशव की पदावली।