भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला / गुलाम मोहम्मद क़ासिर
Kavita Kosh से
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला
और डूबने वालों का जन्बा भी नहीं बदला
तस्वीर नहीं बदली शीशा भी नहीं बदला
नजरें भी सलामत हैं चेहरा भी नहीं बदला
है शौक-ए-सफर ऐसा इक उम्र से यारों ने
मंजिल भी नहीं पाई रस्ता भी नहीं बदला
बे-कार गया बन में सोना मेरा सदियों का
इस शहर में तो अब तक सिक्का भी नहीं बदला
बे-सम्त हवाओं ने हर लहर से साजिश की
ख्वाबों के जजीरे का नक्शा भी नहीं बदला