भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कश्ती में कुप्पी तेल की अन्ना उंडेल डाल / रंगीन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कश्ती में कुप्पी तेल की अन्ना उंडेल डाल
सूखे हैं बाल आ के मिरे सर में तेल डाल

या रब शब-ए-जुदाई तो हरगिज़ न हो नसीब
बंदी को यूँ जो चाहे तो कोल्हू में पेल डाल

बाजी न कर नसीहत-ए-बे-जा जले है दिल
है आग सी जो सीने में उस को कुड़ेल डाल

होगा जो उस का वस्ल तो थल बैठियो रे जी
ये हिज्र के जो दिन हैं तो अब इन को झेल डाल

चढ़-मस्त है ददा कहीं उस की ये चुल बुझे
रंगीं ख़ुदा के वास्ते तू इस को खेल डाल