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कसम मैंने भी खाई है तुम्हें अपना बनाएँगे / चेतन दुबे 'अनिल'
Kavita Kosh से
कसम मैंने भी खाई है तुम्हें अपना बनाएँगे।
तुम्हारे हाथ में दे हाथ अपने साथ लाएँगे।
फिराकर यों नज़र अपनी चुराकर दिल चली जाओ-
तुम्हारे बिन मोहब्बत के सपन मुझको न भाएँगे।
भरा बादल समझकर मैं तुम्हारे पास आया था-
नहीं मालूम था दर से यों खाली लौट जाएँगे।
हमीं हैं जो तुम्हारे ये सभी नखरे उठाते हैं-
जभी तुम रूठ जाओगी तभी तुमको मनाएँगे।
अगर तुमने हमारे प्यार को देदी चुनौती तो
जनम भर हम तुम्हारी याद में आँसू बहाएँगे।
जहाँ में हर किसी की एक अलग तक़दीर है जानम!
कि तुम सपने सजाओगी और हम सपने मिटाएँगे।
मुझे मालूम नहीं था कि तुम्हारा दिल है पत्थर का
तुम्हारे दिल से टकरा कर कई दिल टूट जाएँगे।