भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कसरत-ए-वहदानियत में हुस्न की तनवीर देख / शेर सिंह नाज़ 'देहलवी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कसरत-ए-वहदानियत में हुस्न की तनवीर देख
दीदा-ए-हक़-बीं से रंग-ए-आलम-ए-तस्वीर देख

इस क़दर खिंचना नहीं अच्छा बुत-ए-बे-पीर देख
प्यार की नज़रों से सू-ए-आशिक़-ए-दिल-गीर देख

ग़ैर ने मुझ पर सितम ढाए हैं ढाले आज तू
रह न जाए कोई भी तरकश में बाक़ी तीर देख

काम बन बन कर बिगड़ जाते हैं लाखों रात दिन
किस क़दर है मुझ से बर्गश्ता मिरी तक़दीर देख

फिर न ये कहना कि ख़त लिखा है किस ने ग़ैर को
ले ये है मौजूद तेरे हाथ की तहरीर देख

हारना हिम्मत दलील-ए-कामयबाी से है दूर
काम ले तदबीर से फिर ख़ूबी-ए-तक़दीर देख

गुम्बद-ए-गर्दों सँभल ऐ गुम्बद-ए-गर्दों सँभल
कर न दे सद पाश तीर-ए-आह पर तासीर देख

चार दिन की ज़िंदगी पर मुश्त-ए-ख़ाक इतना ग़ुरूर
पीस देगा एक दिन ये आसमान-ए-पीर देख

बे-बुलाए तो नहीं आया तिरी महफ़िल में ‘नाज़’
देख हाँ हाँ देख अपने हाथ की तहरीर देख