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कसूर / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
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यै पीढ़ी के एत्ते कसूर छै-
आदमी सें आदमी दूर छै!
भीड़ोॅ में निट्ठा अकेलोॅ छै
के बोलेॅ कोन चीज भेलोॅ छै?
चिन्हला केॅ अनचिन रं देखै छै
तनियों टा मुस्की नै फेकै छै
तनलोॅ छै अट्टट अभिमानोॅ रं
कोनी गुमानोॅ में चूर छै?
गोतिया में, गामोॅ में, टोला में
घरोॅ में, ऐङना में, कोला में
एक रेत बहलोॅ छै ‘ईरा’ के
एक धुन सोना के हीरा के
कत्ते कमाय्ये केॅ की करतै?
के बोलेॅ कैहनोॅ ई सूर छै?
पहिलके रं ज्ञानी-विज्ञनी छै
लेकिन घमंडी-अभिमानी छै
मरमोॅ सें, दरदोॅ सें नाता नै
सुन्न छै पथलोॅ रं, दाता नै।
के सोंखी लेने छै यै सब केॅ?
कुच्छु तेॅ बतिया जरूर छै।