कस्तूरी के गेलै ऊ दिन।
केन्होॅ छेलै समय मधुर ऊ
मन के हिरना भरै कुलाँचोॅ,
केना केॅ मुर्ति ऊ बनतै
टूटी गेलै जेकरोॅ साँचोॅ;
सूद महाजन साथे गेलै
हमरोॅ साथोॅ में खाली रिन।
चैतारोॅ ऊ हवा कहाँ छै
अमराई में कोमल के कू?
आबेॅ तेॅ बस बैशाखोॅ के
लू के आँधी हू-हू-हू-हू;
जहाँ रहै बर्फे रं पानी
आय वही पर खोलै आगिन।
की जीवन के अथेॅ आँसू?
हास हृदय के कुछुवोॅ नै छै?
चैन मनोॅ के नै आगू में
अभियो नै तेॅ पिछुवोॅ नै छै।
जिनगी पर दुख चढ़लोॅ हेन्होॅ
जो ठारी सें लटकै नागिन।