कहँमाहि उपजल नव लाख बिरबा / अंगिका लोकगीत
पौधा जन्म लेता है दूसरी जगह और उसकी डाल दूसरे गाँव में फैल जाती है। इसका तात्पर्य दुलहे दुलहिन से है। दोनों का जन्म अलग-अलग होता है, लेकिन विवाह के बाद दोनों परिवारों का संबंध दृढ़ हो जाता है। लड़की माँ के घर पैदा हेाती है, लेकिन वह अपने पति-गृह में जाकर फलवती होती है।
कोहबर में अनमोल फल खाने से दुलहा के दाँत रँग जाते हैं। दुलहिन पूछती है कि आपके ये दाँत कहाँ रँगे गये। दुलहा कहता है- ‘साली-सलहजों ने इन दोनों को रँग दिया है।’ फिर वह अपनी सुंदरी दुलहिन के आँचल की ज्योति को दिखलाने का आग्रह करता है। दुलहिन कह देती है- ‘मेरे आँचल में सूर्य की ज्योति है, तुम इसे सहन कर सकोगे?’ दुलहिन को अपने सतीत्व पर गर्व है। वह पूर्ण विश्वास के साथ उत्तर देती है।
कहँमाहिं उपजल नव लाख बिरबा, कहँमाहिं चतरल<ref>फैल गया</ref> डारि हे।
अनमोल दुलहा नीनिया घुरुमे<ref>मात जाना; नींद से आँखें झँप-झँप जाना; घूम-घूम जाना</ref> हे॥1॥
कवन गाँमे उपजल नव लाख बिरबा, कवन गाँमे चतरल डार हे।
कथि छुरी कतरब नव लाख बिरबा, कथि छुरी कतरब डार हे॥2॥
सोने छुरी कतरब नव लाख बिरबा, रूपे छुरी कतरब डार हे।
सेही पान खैथिन कवन दुलहा, रँगल बतीसो दाँत हे॥3॥
हँसी पूछु बिहँसी पूछु कनिया सुहबे, कहाँ परभु रँगैलिऐ<ref>रँगवाये</ref> लालियो दाँत हे।
तोहरो नैहरबा धनि मोर ससुररिया, ओतहिं<ref>वहीं</ref> रँगैलिऐ लाली दाँत हे।
सारी सरहोज रँगलन लाली दाँत हे॥4॥
हाँसी पूछु बिहँसी पूछु कवन दुलहा, देखु धनि अँचरा के जोत हे।
हम कैसे देखे दिअ अँचरा के जोतिआ, मोरे अँचरा सुरुज के जोते हे।
अनमोल दुलहा, नीनिया घुरुमे हे॥5॥