कहँमा गरजि गेल, कहँमा बरसि गेल / अंगिका लोकगीत
विवाह के समय वर्षा आदि विघ्न-बाधाओं में भी दुलहे के दृढ़ रहने का उल्लेख इस गीत में हुआ है।
कहँमा गरजि गेल, कहँमा बरसि गेल, कहँमा लगावल, घटा घोर हे।
उतरे गरजि गेल, दखिने बरसि गेल, चौदिस लगावल, घटा घोर हे॥1॥
दादाजी के छतिया में, दलक<ref>कंपन</ref> परि गेल, आबे पूता रहत कुमार हे।
जानु दादा अहलहो<ref>‘दहलहो’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref>, जानु दादा दहलहो<ref>डर से काँपना; भयभीत होना</ref>, जानु करहो, चित के उदास हे॥2॥
घर पछुअरबा में, बसै डोमरबा भैया, बूनि देत छतबा पचास हे।
हँसैतेॅ खेलैतेॅ बाबा, साजु बरियतिया, बिहुँसैते लागहो दुआर हे॥3॥
चंदा उगिए गेल, सुरुज छपितभेल, तारा करै झकाभक<ref>तेज प्रकाश</ref> हे।
चाचा मंदिरबा में, मने मने सोचै, कैसे जायब ऐती<ref>इतनी</ref> दूर हे।
आबे पूता रहत कुमार हे॥4॥
जानु चाचा अहलहो, जानु चाचा दहलहो, जानु करहो चित के उदास हे।
हाली हाली आहो बाबा, हौदा<ref>हैदा, हाथी की पीठ पर कसा जाने वाला आसन, जिसके चारों ओर रोक रहती है और पीठ टिकाने के लिए गद्दी बनी रहती है</ref>चढ़ाहो, हाथी पीठि होहु असबार हे॥5॥
हाली हाली आहो बाबा, घोड़ा दौड़ाबहो, पहुँचब समधी दुआर हे।
सोने मोरी होयत बिआह हे॥6॥