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कहता है आज दिन में उजाला बहुत है यार / निश्तर ख़ानक़ाही

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कहता है आज दिन में उजाला बहुत है यार
शायद ये शख़्स रात में जागा बहुत है यार

गुज़रा अभी है जुज़्बे-चहराम* ही रात का
यानी अभी चिराग़ को जलना बहुत है यार

सर सब्ज़ मौसमों की अलामत* तो है कोई
शाख़े-शजर* पे एक भी पत्ता बहुत है यार

हर साले-नौ* पे उसको लिखूं नेक ख़्वाहिशे*
आशोबे-रोज़गार* में इतना बहुत है यार

आँगन की उसके धूल है, इज़्ज़त भी अक़्ल भी
है यों कि उसके हाथ में पैसा बहुत है यार

1- जुज़्बे-चहराम--चौथा भाग

2- अलामत--निशानी

3- शाख़े-शजर--वृक्ष की टहनी

4- साले-नौ--नववर्ष

5- नेक ख़्वाहिशे--शुभकामनाएं

6- आशोबे-रोज़गार--दुनिया के झमेले