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कहते थे “कैसे हुआ घटित चुपके शैशव-यौवन संगम / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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कहते थे “कैसे हुआ घटित चुपके शैशव-यौवन संगम।
अब उरू-उरोज पृथु जघन-नितम्बों-बीच गुदगुदी का उद्गम।
दृग श्रवण-रन्ध्र तक गये पसर अब सब अवयव नवनीत हुये।
कुछ गुन-गुन गुन गाती मधुपों सी सब विस्मय बोझिल गीत हुये।
रसभरी जम्हाई, बदन देखती टिका देहली पर दर्पण।
जाने किस मधु-”पंकिल“ स्मृति में खिल-खिल जाता है कोमल तन।“
हो कहाँ प्रीति-गाहक! विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥112॥