कहते हैं जिसे अब्र वो मैख़ाना है मेरा / बृज नारायण चकबस्त
कहते हैं जिसे अब्र<ref>बादल</ref> वो मैख़ाना<ref>शराबख़ाना</ref> है मेरा
जो फूल खिला बाग़ में पैमाना<ref>प्याला</ref> है मेरा ।
क़ैफ़ीयते गुलशन<ref>उद्यान का दृश्य</ref> है मेरे नशे का आलम<ref>नशे की हालत</ref>
कोयल की सदा<ref>आवाज़</ref> नार-ए-मस्ताना<ref>मतवालों की आवाज़</ref> है मेरा ।
पीता हूँ वो मैं<ref>मद्य</ref> नशा उतरता नहीं जिसका
खाली नहीं होता है वो पैमाना है मेरा ।
दरिया मेरा आईना है लहरें मेरे गेसू<ref>जुल्फ़ के बाल</ref>
और मौज<ref>लहर</ref> नसीमे सहरी<ref>प्रभात की वायु</ref> शाना<ref>कौंधा</ref> है मेरा ।
मैं दोस्त भी अपना हूँ अदू<ref>दुश्मन</ref> भी हूँ मैं अपना
अपना है कोई और न बेगाना है मेरा ।
ख़ामोशी में याँ रहता है तफ़सीर<ref>वकृत्व</ref> का आलम
मेरे लबे ख़ामोश पै अफ़साना है मेरा ।
मिलता नहीं हर एक को वो नूर है मुझमें
जो साहबे बी निश<ref>दृष्टि रखने वाला</ref> है वो परवाना है मेरा ।
शायर का सख़ुन कम नहीं मज़ज़ूब की बड़ से
हर एक न समझेगा वो अफ़साना है मेरा ।