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कहते हो करो बात, हिज्र की विसाल की / नीना कुमार
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कहते हो करो बात, हिज्र की विसाल की
घिर आती है घटा फिर किसीके ख़याल की
जल जाती है शमा, किसी दौर की, कि जब
जब होती थीं शब्-ओ-रोज़ बातें कमाल की
करते थे इन्तिखाब ख्वाबों का मिलके हम
हैरत है उन दिनों के तिफ़्लाना मजाल की
मेहमां थे सारे ख़्वाब, आये और चल दिए
निशानी भी ना रह गई, गुज़रे जमाल की
बीमार हो चलें हैं जिस बात को पूछ कर
आज तक मिली है न दवा उस सवाल की
तसव्वुर में रख तस्वीर बस अब गर्द पोंछते
छोड़ो क्या करें बात अब शिकस्ता हाल की
कुछ धुंधला रही तहरीर, माज़ी के वर्क़ की
और जा चुकी है कबसे बचपन की पालकी