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कहना इक दीवाना तेरी याद में आहें भरता है / साहिर लुधियानवी

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कहना इक दीवाना तेरी
याद में आहें भरता है
लिख कर तेरा नाम ज़मीं पर
उसको सजदे करता है

चाक-गिरेबाँ, खाक़-बसर
फिरता है सूनी राहों में
सायों को लिपटाता है
और लैला लैला करता है
लिख कर तेरा नाम...

तेरी एक झलक की ख़ातिर
जान आँखों में अटकी है
जी का ऐसा हाल हुआ है
जीता है न मरता है
लिख कर तेरा नाम...

ख़ुद को भूल गया है लेकिन
तेरी याद नहीं भूला
दिल के जितने ज़ख़्म हैं
उनमें तेरा ही अक़्स उभरता है
लिख कर तेरा नाम...

कहना मेरे दीवाने से
लैला तेरी अमानत है
तेरी बाहों में दम देगी
तू जिसका दम भरता है
दिल के जितने ज़ख़्म हैं
उनमें तेरा ही अक़्स उभरता है

सदक़े जाऊँ इस क़ासिद पर
जिससे ये पैग़ाम मिला
मेरा क़ातिल मेरा मसीहा
अब भी मुझ पर मरता है