भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहना मुझको रे! मदन / अनुराधा पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहना मुझको रे! मदन, डाला कैसा रंग।
मन बस में रहता नहीं, सचमुच चपल तुरंग॥
सचमुच चपल तुरंग, मगन यह भागा करता।
सोता सकल जहान, मगर यह जागा करता।
कब तक कह! यह घोर, विरह है सहना मुझको।
दिल पर रखना हाथ, मदन! फिर कहना मुझको।