कहनी जो तुम से बात अकेले में
मुझ से होगी वह बात न मेले में।
यह लाखों का मौसम है सावन का
कैसे इस को तोलूं मैं धेले में?
दुनिया बाज़ार हुई सच है फिर भी
यह प्यार कहाँ बिकता है ठेले में?
रक्तिम कपोल तेरे यह कहते हैं
अधरों ने छापी बात अकेले में।
सब सुन लें कैसे ऐसी ग़ज़ल कहूँ
जग के गूँगे बहरों के मेले में ।