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कहने को तो वो मुझे अपनी निशानी दे गया / मानोशी
Kavita Kosh से
कहने को तो वो मुझे अपनी निशानी दे गया
मुझ से लेकर खु़द मुझे मेरी कहानी दे गया
जिसको अपना मान कर रोएँ कोई पहलू नहीं
कहने को सारा जहां दामन ज़ुबानी दे गया
अब उसी के वास्ते घर में कोई कमरा नहीं
वो जो इस घर के लिए सारी जवानी दे गया
आदमी को आदमी से जब भी लड़ना था कभी
वह ख़ुदा के नाम का क़िस्सा बयानी दे गया
उस के जाने पर भला रोएँ कभी क्यों जो मुझे
ज़िंदगी भर के लिए यादें सुहानी दे गया