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कहने रहथि नेताजी / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
Kavita Kosh से
जाहि रूपक जीवन हम
एखन धरि जीलहुँ अछि
से कोनो सर्कसक
एक पहिया साइकिल थिक।
पैडिल तँ छैक मुदा
ब्रेकक गंुजाइश नहि,
सीट लचकदार, मुदा हैण्डिल निपत्ता।
जगहे ने छैक तखन घण्टी लगतैक कतऽ?
चलबालै सड़क, मुदा
तामल धनखेती वा ताहूँसँ बत्तर।
ताहू पर भीड़-भाड़-जेना कोनो मेला हो,
बाट चलनिहारकेँ से चलबाक लूरि नहि,
कोन वाम, कोन दहिन
तकर किछु विचारे ने।
देहक सन्तुलने पर साइकिलकेँ
सन्तुलित राखब छै कते कठिन
अपने अनुमानि लियऽ।
तैयो ट्रक, टैªक्टर, बस, टेम्पू तर पड़लहुँ नहि
तकरो किछु कारण-विशेष
मात्र एतब जे
‘फ्रीव्हिल’ मे ट्रिक कोनो तेहने लगौने छी।
बाटेबाट ठाढ़े-ठाढ़ टोका नमस्कारे पर
कहने रहथि मुस्कुराइत
एक दिन नेताजी।